निरोग्य आहार हेतु यह समझना आवश्यक है की खाने की पाचन क्रिया क्या होती है –
सर्वप्रथम भोजन उतना ही करें जितना आवश्यक है अधिक भोजन करना भी हिंसा का प्रतीक है इससे जिन्हें भोजन नहीं मिल रहा है वो इसे प्राप्त कर सकेंगे सिर्फ मनुष्य ही नहीं पक्षी जानवर फल फूल उनका भी भोजन है अतः अधिक खाना अथवा पीना दोनों ही हानिकारक है जैसे यदि किसी पौधे में अधिक पानी अथवा खाद डाल दें वह अपना जीवन धीरे धीरे खो देता है अर्थात वह अपनी पूर्णावस्था प्राप्त नहीं कर पाता है उसी प्रकार से मनुष्य जीवन भी अपनी पूर्णावस्था से पूर्व ही जीवन से हाथ धो बैठता है.
खाने की पाचन क्रिया मुह , पेट एवं आंत में होती है मूल रूप से. मुह में पाचन सामान्य स्थिति में होता है, पेट में अम्लीय प्रकार से और आंत में क्षारीय प्रकार से. मुह से कार्बोहायड्रेट का पाचन , पेट में प्रोटीन का पाचन , और आंत में सभी प्रकार का शेष पाचन होता है. आमाशय में खाना लगभग २ घंटे तक पचता है और आंत में ४ घंटे तक इसी लिए एक बार खाना खाने के बाद ६ घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए अन्यथा पाचन क्रिया टूट जाएगी और आमाशय कमज़ोर होगा जिससे खाना पचेगा नहीं
मनुष्य – पाचन तंत्र
सर्वप्रथम खाना पचना मुह से शुरू होता है जैसे अपने पाया होगा की आप जैसे ही रोटी मुह में रखते हैं वह मीठी लगने लगती है carbohydrate amylase एंजाइम की वजह से glucose में परिवर्तित हो जाते हैं इसी लिए कहा जाता है की चबा चबा के खाना खाएं और एक कौर को कम से कम 26 से 32 बार चबाएं इससे आपके पेट पर अधिक भर नहीं पड़ेगा और आप उतना ही खाना कहायेंगे जितना आवश्यक है जब व्यक्ति खाना सिर्फ निगलना शुरू कर देता है वह ज़रूरत से अधिक खाता है जिस कारण से नाना प्रकार के रोग से ग्रस्त रहता है.
अत्यंत आवश्यक जब भोजन की इच्छा हो तभी करें अन्यथा उसकी गंध अथवा उसके उपर दृष्टि बना के ना रखें इसका मूल कारण है जब भी हम भोजन का चिंतन अथवा गंध अथवा दृश्य लेते हैं वेगस नर्व द्वारा मस्तिष्क से आमाशय में पाचक रस निकालने का सन्देश भेजा जाता है और इस प्रकार से अनावश्यक रूप से रस का रिसाव शरीर एवं मस्तिष्क में राग द्वेष भी पैदा करता है साथ ही साथ अम्ल की मात्र में भी वृद्धि होती है. इसी कारण से acidity होती है शरीर में.
निरोग्य आहार एवं अहिंसा
१. जैसे पूर्व में बताया की किसी एक जीवित जड़ को निकाल के उसका जीवन समाप्त कर देने से यह सोचें की हमने कुछ आचा किया है यह इसका हमे लाभ मिलेगा तो वह उचित नहीं है इसी प्रकार अपरिपक्व सेवन उचित नहीं है
२. सेवन करने हेतु उनका सेवन करें जो स्वयं से नया जीवन देने में सक्षम है जैसे यदि आपको चना खाना है उसे तब खाएं जब वह हरा की जगह लाल हो जाये यदि आप लाल चना रात्रि में भिगों दें कुछ दिनों में उसमे अंकुर आ जायेगा और वह पुनः वृक्ष में परिवर्तित हो सकेगा इसी प्रकार से हरी मटर की जगह सफ़ेद मटर कच्चे फल की जगज पूर्ण पके हुए फल आदि का सेवन जीवन में वृद्धि देते हैं.
३. किसी भी प्रकार से जीव जंतु से प्राप्त अंडा मांस दूध आदि मनुष्य का भोज पदार्थ नहीं है और न ही इसका सेवन उचित है शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए.
घी – तेल ,चटनी, आचार –
१. खाने का तालमेल होना भी आवश्यक है और इसी लिए प्रोटीन के साथ खट्टा खाना उचित है लेकिन कार्बोहायड्रेट के साथ नहीं अर्थात चावल के साथ अचार चटनी खाने से चावल की पाचन क्रिया रुक जाती है.
२. दाल के साथ घी तेल का सेवन ना करें – दाल का पाचन आमाशय एवं छोटी आंत में होता है तेल या घी का सिर्फ छोटी आंत में और दोनों को साथ में सेवन से दाल के चारो और घी अथवा तेल की एक लेयर बन जाती है जिस कारण से लीवर पैंक्रियास से निकलने वाला रस प्रोटीन को पचा नहीं पाता है.
12:18 PM