आयुर्वेद एवं ग्रह

आयुर्वेद एवं ग्रह

आयु – जीवन अथवा प्राण एक ही चीज़ है वेद जो दाता के निकतम सूची अथवा जानकारी है अथवा वेद सर्वोत्तम श्रृष्टि की रचना का सूचक हैं. लेकिन यदि सिर्फ यह देखा जायेगा की किसी जीवन की हानि करके प्राप्त किये गये गुण कभी उतने अधिक नही हो सकते हैं जितना आवश्यक है. जैसे आम पकने के बाद जब स्वयं से पेड़ से गिर जाये उसका स्वाद और उसके गुण अधिक लाभदायक है बजे की कच्ची अमिया तोड़ ली जाये।

यह प्रकृति द्वारा ही संभव है अथवा किसी पहाड़ अथवा किसी जानवर का कितना भी सुन्दर चित्रण किया जाये वह उसकी वास्तविकता के समक्ष कुछ नही होता.

क्यूंकि यह सम्पूर्ण इकाई है इसलिए समस्त प्रकृति के गुण मनुष्य में उपलब्ध है और इनके ही माध्यम से मनुष्य का आकर आचरण आदि रहता है. समय का प्रतिरूप होने के कारण मनुष्य में वह समत ग्रह निहित हैं जो इस ब्रह्माण्ड में हैं जिनके चलने से मनुष्य के जीवन पर फर्क पड़ता है और उसी के अनुसार ज्योतिष विज्ञान के माध्यम से सत्य का बोध भी होता है अन्य माध्यम भी है लेकिन यह काफी बेहतर है अतः ज्योतिष के अनुसार आप स्वयं से समझें की क्या प्रक्रियाएं रहती है ग्रह को अनुकूल करने की दान, रत्न, जप, धातु, वनस्पति आदि आदि. इस सबके सम्मिलित स्वरुप से ही व्यक्ति आंशिक कमी ला पाता अपनी समस्या में अन्यथा भोग तो करना ही होगा।

जिस प्रकार से वनस्पति को स्वशरीर में बाँधने से नाना प्रकार के गृह दोष से मुक्ति मिलती है अनेक ग्रह हेतु नाना प्रकार की वनस्पति होती है उसी प्रकार से जब वनस्पति का सेवन किया जाता है तो ग्रह संबंधितलाभ मिलते है यही कारण है कुछ लोगों को एक प्रकार की वनस्पति अत्यधिक लाभ देती है किसी को कम और किसी किसी को बिलकुल भी नही।

निरोग्यं आयुर्वेद इसलिए लिए जो भी औषधि निर्माण करती है उसमे अनेक वनस्पति का उपयोग किया जाता है जिससे सम्मिलित स्वरुप प्रत्येक व्यक्ति को लाभ प्रदान करें. औषधि निर्माण में नक्षत्र का सहयोग होता है जिससे विशेष नक्षत्र में विशेष लाभ मिलता है और विशेष समय पर ही सेवन करने से विशेष लाभ मिलते हैं आयुर्वेद में लेकिन इतना सब कर पाना आज के समय में संभव नही है इसी लिए लोगों को नाना प्रकार की समस्या को झेलना पड़ता है शारीरिक मानसिक आदि।


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