दूध का पाचन कम अम्ल में होता है इसीलिए बच्चों को आसानी से पच जाता है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ वह नहीं पचता है और आंत में समस्या पैदा करता है. दूध न पचने के कारण वह खून में मिल के कई बीमारी पैदा करता है।
दूध या श्वेत जीव –
मनुष्य के जीवन में दूध का कितना महत्व है यह प्रकृति के द्वारा पूर्व निर्धारित है यह धारणा है की मनुष्य जो दूध पीना चाहिए लेकिन प्रकृति द्वारा प्रत्येक माँ को दूध उत्पादन की क्षमता दी गयी है वह दूध का उत्पादन उतने ही समय तक होता है जब तक उसकी आवश्यकता है और निर्धारित मात्रा से कुछ अधिक भी होता है।
यह धारणा वर्षों से चली आ रही है की मनुष्य को दूध पीने से असंख्य लाभ मिलते हैं जिसे बाद में विज्ञान से कैल्सीयम एवं प्रोटीन के संदर्भ में भी समझाया।
दूध के विषय में अधिक समझने से पूर्व यह समझते हैं की मनुष्य में पाचन किस प्रकार होता है सर्वप्रथम पाचन मुँह में शुरू होता है और उसके बाद आमाशय में छोटी आँत एवं बड़ी आँत में होता है।
कार्बोहाइड्रेट एवं स्टार्च आदि मुँह में ही पचने शुरू हो जाते हैं जैसे रोटी मह में आते ही मीठी लगने लगती है इसी प्रकार से चावल भी मुह में मीठा हो जाता है इसका कारण है मुँह में उपलब्ध एमिलेज एंज़ायम जो कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोस आदि में परिवर्तित करता है इसीलिए कहा जाता है रोटी चावल को चबा चबा के खाएँ।
प्रोटीन की पाचन क्रिया आमाशय में होती है एवं अन्य की आँत में किसी अन्य पोस्ट में प्रोटीन अमीनो ऐसिड में कैसे बदलता है यह समझेंगे आज दूध के विषय में समझते हैं। प्रोटीन को पचने के लिए कई प्रकार से अम्लीय पदार्थ की आवश्यकता होती है जिसमें लिवर पैंक्रीयास से निकलने वाले जूस आदि सम्मिलित हैं और आमाशय में प्रोटीन का ही पाचन अच्छे से होता है।
दूध मनुष्य को अपनी माँ से प्राप्त होता है और वह भी 3 से 4 वर्ष के अंदर माता का दूध का उत्पादन समाप्त हो जाता है जिसका मूल कारण है प्रकृति के नियम अनुसार जिस समय तक मनुष्य को दूध की आवश्यकता है उतने ही समय तक वह इसका सेवन करें। बचपन में माँ से प्राप्त दूध क गुण और जानवर से प्राप्त दूध के गुण में अंतर है इसलिए दूध का सेवन बढ़ती उम्र के साथ पचने में दिक़्क़त करता है।